Thursday, February 20, 2014

दहलीज़ पर मुहब्बत

रोजी रोटी के चक्कर से छुड़ाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.

हर एक पल कशमकश में जिया है मैंने
जिंदगी तुझको तो नश्तर से सिया है मैंने
अब इसे आंचल मैं तेरा बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.

उम्र तो वक्त के पहिए सी कटी जाती है
जिंदगी सांस दर सांस घटी जाती है
वक्त को इश्क का नाज़िर मैं बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.

एक तरफ चांद है, तारे हैंसभी प्यारे हैं
एक तरफ आग है, राख हैअंगारे हैं
आह को इश्क की राह बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.

मुहब्बत भी शहंशाहों के सिर का ताज हो गयी
आह भी किसी की गज़ल का साज़ हो गयी
इस साज़ को तेरे होठों पे सजाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
राजकुमार सिंह.

Friday, February 14, 2014

वेलेंटाइन डे पर

वो शब्द जो कहे नहीं गए
बस आंखों ने पढ़े
मन में गढ़े
आज भी सिर्फ तुम्हारे हैं.

वो महक जो किसी फूल की नहीं
बस सांसों में बसी
फिजाओं में हंसी
आज भी तुम्हारी है.

वो सपने जो आंखों ने नहीं देखे
दिल से दिल ने बुने
हमने मिलकर चुने
आज भी तुम्हारे हैं.

वो जो भी है अनकहा
अनसुना
अनछुआ
सब आज भी तुम्हारा है.
मेरे वेलेंटाइन.
(Rajkumar Singh,14 Feb- 2010)