राजा बनना आसान है, फकीर बनना कठिन. वैसे ही जैसे चंद्रगुप्त बनना आसान है चाणक्य बनना कठिन. खुद मुक्त होना सरल है, दूसरों को मुक्ति का मार्ग दिखाना बहुत कठिन. योग, साधना और तपस्या के बल से चमत्कार दिखाने वाले योगी तो कई मिल जाएंगे, पर बुद्ध, कबीर, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद और गांधी की तरह खुद कष्ट सहकर लोगों के दुख दूर करने वाले फकीर और साधु कम मिलेंगे. इस देश में फकीरों की महान परंपरा रही है. बुद्ध, कबीर, निजामुद्दीन औलिया, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानक, महात्मा गांधी से लेकर मदर टेरेसा तक कई महान लोग हुए हैं जिन्हें हम फकीर, साधु, सन्यासी, सुधारक कुछ भी कह सकते हैं. इन सबने लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाया.
तो मोदी जी जब आप कहते हैं कि मैं तो फकीर हूं तो हो सकता है आप ऐसा वाकई में सोचते हों. लेकिन ये आसान नहीं है, ये कोई जुमला भी नहीं है. फकीर का मतलब झोला उठाकर पहाड़ों पर चले जाना ही नहीं है. अगर आप अंबेडकर को देखें तो वो भी एक फकीर ही थे, जिन्होंने सदियों से दबे कुचले लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाया. आज भी कई जगहों पर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपनी रोजी रोटी चलाते हुए भी दूसरों को मुक्ति का रास्ता दिखाते हैं. फकीरों या साधु-सन्यासियों का सबसे बड़ा गुण यही रहा कि उन्होंने निजी उन्नति को छोड़कर लोगों की उन्नति को अपनाया. बुद्ध चाहते तो चक्रवर्ती राजा बन सकते थे. विवेकानंद चाहते तो अपने योग और साधना के बल पर खुद की मुक्ति का मार्ग पाते, पहाड़ों या गंगा किनारे बैठ कर आत्मा से परमात्मा का मिलन कराते और अपने योग के दम पर लोगों को चमत्कार भी दिखाते. जैसा कि विवेकानंद ने खुद कहा भी था कि उनका मन साधना और परालौकिक क्रियाओं में खूब रमता था, लेकिन उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने कह दिया था कि खुद अपनी मुक्ति तक सीमित रहकर स्वार्थी मत बनो तुम्हें तो इस देश की गरीब जनता को मुक्ति का मार्ग दिखाना है. विवेकानंद इसी राह पर चलते हुए तमाम बीमारियों का शिकार हुए. इसी तरह रामकृष्ण परमहंस जिन्हें गले का कैसर था ने अपनी योगिक क्रियाओं से इसे ठीक करने से मना कर दिया था. क्योंकि ऐसा करना उनका निजी स्वार्थ होता. बाद में बेहद तकलीफ के बीच उनकी मौत हुई.
तो मोदी जी जब आप कहते हैं कि झोला उठाकर चल दूंगा, फकीर हूं. तो आपको देश के इन फकीरों को समझना जरूर चाहिए. झोला उठाकर पहाड़ों पर चैन से खुद की उन्नति करना फकीरी नहीं है. फकीर बनना है तो मदर टेरेसा से कुछ सीखना होगा आपको. बिना जाति-धर्म का भेद किए दुखियों की सेवा करना सीखना होगा. तो प्रधानमंत्री बनना आसान है, फकीर बनना नहीं. यही वजह है कि देश के इतिहास में राजाओं, शहंशाहों को लोगों ने भुला दिया है पर फकीरों की शमां रौशन है.
वैसे फकीरी का ढोंग भी इन दिनों खूब हो रहा है. बहुत सारे बिजनेसमैन और प्रोफेशनल्स भी गेरुआ पहनकर फकीर बनने का नाटक करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि ये अच्छे प्रोफेशनल्स हैं जो लोगों को बेहतर जीवन जीने का रास्ता बताते हैं. पर ऐसा वे निस्वार्थ नहीं करते. हालांकि ये कोई गलत बात नहीं है. गलत सिर्फ ये है कि आप खुद को फकीर, साधु कहते हैं. साफ साफ कहें कि प्रोफेशनल हैं. प्रोफेशनल और कारोबारी होना गलत नहीं है.
राजकुमार