तुमसे मिलकर निखर
गया हूं मैं
खुशबू बनके फिजां
में बिखर गया हूं मैं
तुमने जब से निगाह
डाली है
कितनी आंखों में अखर
गया हूं मैं
तेरी तासीर ही कुछ
ऐसी है
बिन सजे ही संवर गया
हूं मैं
मांगा कुछ भी नहीं
खुदा की कसम
तेरी रहमत से ही भर
गया हूं मैं
खोल दो लब उठा भी लो
बांहें
आखिरी बार है मर गया
हूं मैं
एक पाकीजा सा नूर है
तुझमें
बिन इबादत ही तर गया
हूं मैं
मेरे महबूब मुझसे मत
पूछो
कहां से आया किधर
गया हूं मैं
मैं इक परिंदा तू
हौसला मेरा
यूं आसमां फतह कर
गया हूं मैं
तेरी खामोशी को पढ़
लेना हुनर है मेरा
अलफाज़ सब तेरे हैं
गज़ल में भर गया हूं मैं.
Rajkumar
No comments:
Post a Comment