नज़र को धोखे बार बार हुए
यूं जीने के बहाने हज़ार
हुए
तेरी आहट से जीने की वजह
मिलती रही
ज़िंदगी के पल तो कब से
तार तार हुए
उम्मीदों की किताबों में
थक कर लौट आता हूं
उन किताबों के पन्ने भी
अब ज़ार ज़ार हुए
उसी शाम को अब तक सहेजे
बैठा हूं
जिसके आगोश में हम तुम
ज़ार ज़ार हुए
कभी हाथों से कभी आंखों
से फिसला लम्हा
हादसे साथ मेरे ऐसे बार
बार हुए
मुकम्मल सा एक अहसास भी
दे न पाए तुझे
जिंदगी खुद से भी हम अब
तो शर्मसार हुए
टूटा चांद देता है जीने
का हौसला हमको
तीर तो कितने ही ज़िगर के
आर पार हुए
कभी हाथों से कभी बातों
से उतारी बलाएं
किस्मत संवारने के टोटके
पर सब बेकार हुए.
कयामत होगी जब आएगी डोली
में मिलने मुझसे
ऐ आखिरी दोस्त तेरे दीदार
को हम भी बेकरार हुए.
Rajkumar Singh
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