रोजी रोटी के चक्कर से छुड़ाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
हर एक पल कशमकश में जिया है मैंने
जिंदगी तुझको तो नश्तर से सिया है मैंने
अब इसे आंचल मैं तेरा बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
उम्र तो वक्त के पहिए सी कटी जाती है
जिंदगी सांस दर सांस घटी जाती है
वक्त को इश्क का नाज़िर मैं बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
एक तरफ चांद है, तारे हैं, सभी प्यारे हैं
एक तरफ आग है, राख है, अंगारे हैं
आह को इश्क की राह बनाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
मुहब्बत भी शहंशाहों के सिर का ताज हो गयी
आह भी किसी की गज़ल का साज़ हो गयी
इस साज़ को तेरे होठों पे सजाऊं कैसे
ऐ मुहब्बत तुझे घर अपने मैं लाऊं कैसे.
राजकुमार सिंह.