जो एक नज़र में लोगों को पहचान जाते हैं
वो दुनिया को कितना कम जान पाते हैं
बड़े सियासतदां हैं मुल्क की किस्मत बनाते हैं
घर के चराग से ही घर को जलाते हैं
बड़े साहबों का ये मिजाज़ भी खूब है
करना तो दूर सलाम लेने से भी कतराते हैं
कभी गौर से देखो तो जान जाओगे
कुछ चेहरों पे पहाड़ भी उग आते हैं
इन आंखों में उतरोगे तो बह जाओगे
कई समंदर हैं जो रह रह के थरथराते हैं
खामोशी को पढ़ लेना आसान नहीं होता
वक्त की स्लेट पे कई अफसाने लिखे होते हैं
हाथ में हाथ हमेशा रहे ज़रूरी तो नहीं
मेहंदी से हथेली पे तेरा नाम लिखे रहते हैं
जो एक नज़र में लोगों को पहचान जाते हैं
वो दुनिया को कितना
कम जान पाते हैं.
-राजकुमार सिंह