जिंदगी
की राह से गुजरे तो महसूस हुआ
जहां जिसे
भी छोड़ दिया उसी का अफसोस हुआ
गैरों की
बस्ती में तो कोई आस कहां थी
अपनों की
महफिल में ही मेरा इम्तिहान हुआ
तकल्लुफ
भरी इन गलियों से बच के निकलता हूं
इस शहर
ने मुझे और मैंने शहर को पहचान लिया
वक्त ढल
जाएगा तो कोई सलाम भी न लेगा
चढ़ते
सूरज के दौर मैंने ये खूब जान लिया
- राजकुमार सिंह
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