Sunday, April 27, 2014

मासूम

ये तब की बात है
जब शब्दों के अर्थ नहीं होते थे
सिर्फ अहसास ही काफी था
कुछ कहने सुनने को.
तब तुम जैसे ओस की एक बूंद
और मैं एक कोरी स्लेट
तुम तब भी थीं थोड़ी समझदार और पूरी मासूम
और मुझ पर भी बहुत कुछ लिखा जाना था.
ये अब की बात है
तुम्हारे होठों पर अब भी टिकी है
वो ओस की बूंद पर पपड़ी बन कर
और मेरी स्लेट लिखते-मिटते जैसे घिस सी गयी है.
तब से अब तक
यूं ही चले हम भीगते सूखते
न तुम संभाल पायीं वो ओस की बूंद
और न मेरी स्लेट रही कोरी.
Rajkumar Singh

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