Saturday, September 27, 2014

जीने के बहाने हज़ार हुए

नज़र को धोखे बार बार हुए
यूं जीने के बहाने हज़ार हुए

तेरी आहट से जीने की वजह मिलती रही
ज़िंदगी के पल तो कब से तार तार हुए

उम्मीदों की किताबों में थक कर लौट आता हूं
उन किताबों के पन्ने भी अब ज़ार ज़ार हुए

उसी शाम को अब तक सहेजे बैठा हूं
जिसके आगोश में हम तुम ज़ार ज़ार हुए

कभी हाथों से कभी आंखों से फिसला लम्हा
हादसे साथ मेरे ऐसे बार बार हुए

मुकम्मल सा एक अहसास भी दे न पाए तुझे
जिंदगी खुद से भी हम अब तो शर्मसार हुए

टूटा चांद देता है जीने का हौसला हमको
तीर तो कितने ही ज़िगर के आर पार हुए

कभी हाथों से कभी बातों से उतारी बलाएं
किस्मत संवारने के टोटके पर सब बेकार हुए.

कयामत होगी जब आएगी डोली में मिलने मुझसे
ऐ आखिरी दोस्त तेरे दीदार को हम भी बेकरार हुए.
Rajkumar Singh

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