Saturday, November 29, 2014

प्रवाह

लहरों की रवानी कहीं नहीं जाती
वैसे ही जैसे जवानी कहीं नहीं जाती
देखो ये तो खड़ी है तुम्हारे सामने
समा रही है बच्चों में
नए फूल खिलने को तैयार हैं.

ऊर्जा बन कर बहती है
इस मिट्टी में बसती है                  
बीज से खिलती है
नए पौधों में मिलती है
जवानी कहीं जाती नहीं.

सैनिकों के बूटों में गाती है
लड़कियों की चोटियों में लहराती है
पेड़ से पौधे में समाती है
जवानी कहीं नहीं जाती.

इस सरल प्रक्रिया का हिस्सा बनो
विदाई का सम्मान रखो
बच्चों की उंगली पकड़ दे दो अपनी ताकत
और देखो अपनी जवानी को एक नए रंग में
क्योंकि जवानी कहीं जाती नहीं.
(c) राजकुमार सिंह

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 28 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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