लहरों की रवानी कहीं नहीं जाती
वैसे
ही जैसे जवानी कहीं नहीं जाती
देखो
ये तो खड़ी है तुम्हारे सामने
समा
रही है बच्चों में
नए
फूल खिलने को तैयार हैं.
ऊर्जा
बन कर बहती है
इस
मिट्टी में बसती है
बीज
से खिलती है
नए
पौधों में मिलती है
जवानी
कहीं जाती नहीं.
सैनिकों
के बूटों में गाती है
लड़कियों
की चोटियों में लहराती है
पेड़
से पौधे में समाती है
जवानी
कहीं नहीं जाती.
इस
सरल प्रक्रिया का हिस्सा बनो
विदाई
का सम्मान रखो
बच्चों
की उंगली पकड़ दे दो अपनी ताकत
और
देखो अपनी जवानी को एक नए रंग में
क्योंकि
जवानी कहीं जाती नहीं.
(c)
राजकुमार सिंह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 28 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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