तुम्हारे
गुनाहों का कोई हिसाब नहीं होता
हद तो ये
है कि लहू भी अब लाल नहीं होता.
लहू कुछ
इस कदर ठंडा हो गया है
आंख को
तो छोड़िए, रगों में भी उबाल नहीं होता.
अहसान
नमक बन के नसों में दौड़ता है
फिर भी
लहू अब तक हलाल नहीं होता.
तुम्हारी
मसीहाई में कत्ल हो जाते हैं बच्चे
और तुमसे
कोई सवाल नहीं होता.
सदियों
से सजदे में झुका है सिर
क्यों
तेरा जलवा जलाल नहीं होता.
काफिले लुटते रहे, हम गजल कहते रहे
रहबर तेरी रहबरी पर फिर भी सवाल नहीं होता.
डेमोक्रेसी
का मजमा तो देखो दोस्तो
बंदरों
से भी अब सलाम नहीं होता.
लहू का
स्वाद जब से मुंह लग गया है
हुक्मरानों
के हाथों में अब जाम नहीं होता.
तुम्हारी
एक वहशत से मिट जाती हैं नस्लें
और फिर
भी तुम पर कोई इलजाम नहीं होता.
कभी
नारों से हिल जाती थी धरती
अब मर भी
जाओ तो ये काम नहीं होता.
Rajkumar Singh
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