तुम जो
सदियों से आधे हो
आधे नंगे, आधे पेट, आधे जीवन
तुम्हारे
आंसुओं को पी जाते हैं
वे शराब
की तरह
तुम्हारे
चेहरे की झुर्रियों को
टांग
देते हैं ड्राइंग रूम में
मातृत्व
को देते हैं इनाम
आर्ट
गैलरियों में
तुम्हारी
त्रासदी कहानी
बेच देते
हैं बाजारों में
बंदर बना
कर नचा देते हैं
तुमको
परेडों में
तुम्हारे
जंगलों में बो देते कंक्रीट
तुम्हारे
लहू से लिख देते विकास गाथा
धरती खो
जाने के डर से
तुमने
आसमान नहीं देखा
अब न राम
आएंगे, न जामवंत
स्वयं
जगानी होगी शक्ति
लंका दहन
को.Rajkumar Singh
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